भगवान हनुमान की पूजा में नियमित रूप से हनुमान अष्टक ( Hanuman Ashtak) का पाठ करने से भक्तों पर आए गंभीर संकट भी दूर हो जाते हैं। तुलसीदास जी ने भगवान हनुमान की भक्ति में यह अष्टक लिखा था। मान्यता है कि जो लोग संकटमोचन हनुमान जी की भक्ति में हनुमान अष्टक का पाठ करते हैं, हनुमान जी उन्हें हर संकट से मुक्ति दिलाते हैं। हनुमान चालीसा ( Hanuman Chalisa )के साथ संकटमोचन हनुमान अष्टक ( Sankatmochan Hanuman Ashtak) का पाठ करने से इसका दोगुना फल प्राप्त होता है।
क्यों है हनुमान अष्टक इतना प्रभावशाली? ( Why is Hanuman Ashtak so effective? )
- हनुमान जी की कृपा: हनुमान जी को संकटमोचन के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि उनके अष्टक का पाठ ( Hanuman Aashtak Path) करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
- धार्मिक विश्वास: हिंदू धर्म में, हनुमान जी को बल, बुद्धि और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनका अष्टक Hanuman Aashtak भक्तों को इन गुणों से जोड़ने में मदद करता है।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: नियमित रूप से मंत्रों का जाप करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है। यह मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देती है, जिससे संकटों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है।
हनुमान अष्टक के अन्य लाभ: Other benefits of Hanuman Ashtak:
- सकारात्मक ऊर्जा: यह अष्टक सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाता है।
- आत्मविश्वास: नियमित पाठ से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होता है।
- रोग निवारण: माना जाता है कि हनुमान अष्टक कई प्रकार के रोगों से बचाता है।
कैसे करें हनुमान अष्टक का पाठ:
- शुद्ध मन से: पाठ करते समय मन को शांत रखें और हनुमान जी के प्रति श्रद्धा रखें।
- नियमितता: नियमित रूप से पाठ करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
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