Shiv Swarnamala Stuti

आदि शंकराचार्य कृत: शिव स्वर्णमाला स्तुति (Shiv Swarnamala Stuti)

शिव स्वर्णमाला स्तुति ( Shiv Swarnamala Stuti ) भगवान शिव की एक अत्यंत प्रभावशाली और दुर्लभ स्तुति है, जिसे अद्वैताचार्य श्री आदि शंकराचार्य जी ने रचा है। इस स्तुति का नाम “स्वर्णमाला” इसलिए रखा गया है क्योंकि इसमें भगवान शिव के दिव्य गुणों, रूप, और महिमा का वर्णन स्वर्ण के समान अमूल्य और चमकदार शब्दों में किया गया है। यह स्तुति संस्कृत भाषा में रचित है और कुल 52 श्लोकों में भगवान शिव का गुणगान करती है।

शिव स्वर्णमाला स्तुति ( Shiv Suvarnamala Stuti ) का पाठ करने से भक्त के मन, वाणी और विचार पवित्र हो जाते हैं। यह स्तुति न केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति प्रदान करती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका नियमित पाठ करता है, उसके जीवन से भय, रोग और पाप दूर होते हैं और उसे परम शांति की प्राप्ति होती है।

इस स्तुति में भगवान शिव को त्रिलोचन, नीलकंठ, विश्वनाथ, महादेव, और सदाशिव के रूप में पूजते हुए उनके अनंत स्वरूप की महिमा गाई गई है। शब्दों की मधुरता और भावों की गहराई इस स्तुति को अत्यंत रमणीय बनाती है।

विशेष रूप से सावन माह, महाशिवरात्रि, या सोमवार के दिन शिव स्वर्णमाला स्तुति ( Shiv Swarnamala Stuti Lyrics ) का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह न केवल भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है, बल्कि आत्मा को मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर करता है।

Shiv Swarnamala Stuti Lyrics

ईशगिरीश नरेश परेश महेश बिलेशय भूषण भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

उमया दिव्य सुमङ्गल विग्रह यालिङ्गित वामाङ्ग विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

ऊरी कुरु मामज्ञमनाथं दूरी कुरु मे दुरितं भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

ॠषिवर मानस हंस चराचर जनन स्थिति लय कारण भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्
अन्तः करण विशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

करुणा वरुणा लय मयिदास उदासस्तवोचितो न हि भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

जय कैलास निवास प्रमाथ गणाधीश भू सुरार्चित भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्
झनुतक झङ्किणु झनुतत्किट तक शब्दैर्नटसि महानट भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

धर्मस्थापन दक्ष त्र्यक्ष गुरो दक्ष यज्ञशिक्षक भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुण रुचितं चिरं प्रदेहि विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्
शर्व देव सर्वोत्तम सर्वद दुर्वृत्त गर्वहरण विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

भगवन् भर्ग भयापह भूत पते भूतिभूषिताङ्ग विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

षड्रिपु षडूर्मि षड्विकार हर सन्मुख षण्मुख जनक विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्

सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मे त्येल्लक्षण लक्षित भो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्
हाऽहाऽहूऽहू मुख सुरगायक गीता पदान पद्य विभो
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्


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